वो इत्र-दान सा लहजा मेरे बुज़ुर्गों का; रची-बसी हुई उर्दू ज़बान की ख़ुश्बू! |
हम भी दरिया हैं हमें, अपना हुनर मालूम है; जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा। |
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से; ये नए मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो। |
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से, ये नए मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो। |
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा; इतना मत चाहो उसे वो बे-वफ़ा हो जायेगा। |
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से; ये नए मिजाज का शहर है, जरा फ़ासले से मिला करो। |
हर धड़कते पत्थर को, लोग दिल समझते हैं; उम्र बीत जाती है, दिल को दिल बनाने में। |
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में; तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में। |
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो;>br/> न जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए। |
चरागों को आँखों में महफूज रखना; बड़ी दूर तक रात ही रात होगी; मुसाफिर हो तुम भी, मुसाफिर हैं हम भी; किसी मोड़ पर, फिर मुलाकात होगी। |