कोई कब तक एक नाम दिन-रात पुकारे? शाम उतर आई खिड़की में बिना तुम्हारे! |
तू अपनी रफ्तार पे इतना ना इतरा,ऐ जिंदगी; अगर मैंने रोक ली साँस तो, तू भी चल नही पायेगी! |
ज़िंदगी सब्र के अलावा कुछ भी नहीं है, मैंने हर शख़्स को यहाँ ख़ुशियों का इंतजार करते देखा है! |
एक दिन भी ना निभा सकेंगे मेरा किरदार; वो लोग जो मुझे मशवरे हजार देते हैं! |
हादसे इंसान के संग मसखरी करने लगे, लफ़्ज़ कागज़ पर उतर जादूगरी करने लगे; क़ामयाबी जिसने पाई उनके घर तो बस गये, जिनके दिल टूटे वो आशिक़ शायरी करने लगे! |
ना जन्नत में, ना ख्यालों में, ना ही किसी जमाने में; सुकून दिल को मिलता है हमें तुमसे नजरें मिलाने में! |
कुछ कह गए, कुछ सह गए, कुछ कहते कहते रह गए; मैं सही तुम गलत के खेल में, न जाने कितने रिश्ते ढह गए! |
चुपचाप चल रहे थे ज़िन्दगी के सफर में; तुम पर नज़र पड़ी और गुमराह हो गए! |
क़र्ज़ होता तो उतार भी देते, कम्बख्त इश्क़ था चढ़ा रहा! |
दुनिया की क्या मजाल देता हमें कोई फरेब; अपनी ही आरजू के हुए हम शिकार हैं! |