तेज़ है आज दर्द-ए-दिल साक़ी; तल्ख़ी-ए-मय को तेज़-तर कर दे! * तल्ख़ी-ए-मय: bitterness of the wine |
जब तुझे याद कर लिया सुबह महक महक उठी; जब तेरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गयी! |
कर रहा था ग़म-ए-जहाँ का हिसाब; आज तुम याद बे-हिसाब आए! |
दोनों जहान तेरी मोहब्बत में हार के; वो जा रहा है कोई शब-ए-ग़म गुज़ार के! * शब-ए-ग़म - ग़म/दुख की रात |
आए कुछ अब्र कुछ शराब आए; इस के बा'द आए जो अज़ाब आए! *अब्र- मेघ, बादल |
शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई: शाम-ए-फ़िराक़ अब न पूछ आई और आ के टल गई, दिल था कि फिर बहल गया जाँ थी कि फिर सँभल गई; बज़्म-ए-ख़याल में तेरे हुस्न की शमा जल गई, दर्द का चाँद बुझ गया हिज्र की रात ढल गई; जब तुझे याद कर लिया सुब्ह महक महक उठी, जब तेरा ग़म जगा लिया रात मचल मचल गई; दिल से तो हर मुआमला कर के चले थे साफ़ हम, कहने में उन के सामने बात बदल बदल गई; आख़िर-ए-शब के हम-सफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुए, रह गई किस जगह सबा सुब्ह किधर निकल गई! |
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा; राहतें और भी हैं वस्ल की राहत के सिवा! x |
दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है; लम्बी है गम की शाम मगर शाम ही तो है! |
तुझ पे उठ्ठी हैं वो खोई हुयी साहिर आँखें; तुझ को मालूम है क्यों उम्र गवाँ दी हमने! |
इक फ़ुर्सत-ए-गुनाह मिली वो भी चार दिन; देखे हैं हम ने हौसले पर्वरदिगार के! |