घर के बाहर ढूँढता रहता हूँ दुनिया; घर के अंदर दुनिया-दारी रहती है! |
बहुत ग़ुरूर है दरिया को अपने होने पर; जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियाँ उड़ जाएँ! |
मोम के पास कभी: मोम के पास कभी आग को लाकर देखूँ, सोचता हूँ कि तुझे हाथ लगा कर देखूँ; कभी चुपके से चला आऊँ तेरी खिलवत में, और तुझे तेरी निगाहों से बचा कर देखूँ; मैंने देखा है ज़माने को शराब पी कर, दम निकल जाये अगर होश में आकर देखूँ; दिल का मंदिर बड़ा वीरान नज़र आता है, सोचता हूँ तेरी तस्वीर लगा कर देखूँ; तेरे बारे में सुना ये है कि तू सूरज है, मैं ज़रा थोड़ी देर तेरे साये में आ कर देखूँ; याद आता है कि पहले भी कई बार यूँ ही, मैंने सोचा था कि मैं तुझको भुला कर देखूँ। |
अब ना मैं हूँ, ना बाकी हैं ज़माने मेरे, फिर भी मशहूर हैं, शहरों में फ़साने मेरे; ज़िंदगी है तो नए ज़ख्म भी लग जाएंगे, अब भी बाकी हैं कई दोस्त पुराने मेरे| |
गुलाब, ख्वाब, दवा, ज़हर, जाम क्या क्या हैं; मैं आ गया हूँ, बता इंतज़ाम क्या क्या हैं; फ़क़ीर, शाह, कलंदर, इमाम क्या क्या हैं; तुझे पता नहीं तेरा गुलाम क्या क्या है। |
सूरज, सितारे, चाँद मेरे साथ में रहें; जब तक तुम्हारे हाथ मेरे हाथ में रहें; शाखों से टूट जायें वो पत्ते नहीं हैं हम; आँधियों से कोई कह दे कि औकात में रहें। |
आँखों में पानी रखो, होंठो पे चिंगारी रखो; जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो; राह के पत्थर से बढ के, कुछ नहीं हैं मंजिलें; रास्ते आवाज़ देते हैं, सफ़र जारी रखो। |
जागने की भी, जगाने की भी, आदत हो जाए; काश तुझको किसी शायर से मोहब्बत हो जाए; दूर हम कितने दिन से हैं, ये कभी गौर किया; फिर न कहना जो अमानत में खयानत हो जाए। |
अब हम मकान में ताला लगाने वाले हैं; पता चला हैं कि मेहमान आने वाले हैं। |
रात में कौन वहां जाये जहाँ आग लगी, सुबह अख़बार में पढ़ लेंगे कहाँ आग लगी; आग से आग बुझाने का अमल जारी था, हम भी पानी लिए बैठे थे जहाँ आग लगी; वो भी अब आग बुझाने को चले आएं हैं, जिनको ये भी नहीं मालूम कहाँ आग लगी; किसको फुरसत थी जो देता किसी आवाज़ पे ध्यान, चीखता फिरता था आवारा धुंआ आग लगी; सुबह तक सारे निशानात मिटा डालेंगे, कोई पूछेगा तो कह देंगे कहाँ आग लगी। |