ज़िंदगी एक फ़न है लम्हों को; अपने अंदाज़ से गँवाने का! *फ़न: कला |
दर्द उल्फ़त का न हो तो ज़िंदगी का क्या मज़ा; आह-ओ-ज़ारी ज़िंदगी है बे-क़रारी ज़िंदगी! *आह-ओ-ज़ारी: विलाप/शोक |
मुझे ख़बर नहीं ग़म क्या है और ख़ुशी क्या है; ये ज़िंदगी की है सूरत तो ज़िंदगी क्या है! |
ज़िंदगी यूँ हुई बसर तन्हा; क़ाफ़िला साथ और सफ़र तन्हा! |
यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें; इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो! |
ज़िंदगी एक हादसा है और कैसा हादसा; मौत से भी ख़त्म जिस का सिलसिला होता नहीं! |
धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो; ज़िंदगी क्या है किताबों को हटा कर देखो! |
ज़िंदगी क्या जो बसर हो चैन से; दिल में थोड़ी सी तमन्ना चाहिए! |
तू कहानी ही के पर्दे में भली लगती है; ज़िंदगी तेरी हक़ीक़त नहीं देखी जाती! |
जो गुज़ारी न जा सकी हम से; हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है! |